जानें भगवान विष्णु के नौ दिव्य अवतार और उनके द्वारा शासित ग्रहों के विषय में सम्पूर्ण जानकारी
देवताओं में सबसे शक्तिशाली त्रिदेव को माना जाता है। त्रिदेव का अर्थ है तीन देवता जिसमें भगवान विष्णु के साथ भगवान ब्रह्मा और भगवान महेश सम्मिलित हैं। मनुष्य को जीवन, प्रेम और जीवन यापन करने का ज्ञान प्रदान करने के लिए भगवान विष्णु समय के अनुसार अलग-अलग अवतार लेते रहें हैं। उनके प्रत्येक अवतार का अपना एक महत्व है तथा प्रत्येक अवतार के लक्षण किसी विशिष्ट ग्रह के लक्षण से मिलते जुलते हैं। प्रत्येक ग्रह को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। आईये उन अवतार के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं।
हमारे निःशुल्क वैदिक ज्योतिष रिपोर्ट के साथ अपने व्यक्तित्व को जानने के साथ, अपने दोषों और अनुकूल व प्रतिकूल समय आदि का गहन विश्लेषण प्राप्त करें। देखें कि आपकी कुंडली आपके जीवन के प्रत्येक पक्ष के बारे में क्या कहती है।
1. 'केतु' मत्स्य अवतार का प्रतिनिधित्व करता है
भगवान विष्णु का प्रथम अवतार मत्स्य अवतार को माना जाता है। भगवान विष्णु ने उस समय मत्स्य का अवतार लिया था जब संसार समाप्ति की ओर था। भगवान विष्णु ने मत्स्य या मीन अवतार के माध्यम से राजा सत्यव्रत की सहायता की थी, और संसार का प्रलय होने से बचाया था।
राजा सत्यव्रत बहुत ही धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति थे और ईश्वर में उनकी अपार आस्था थी। अपनी दैनिक संध्यावंदन के दौरान सत्यव्रत जब कृतमाला नदी के किनारे सूर्य देवता को जल अर्पित कर रहे थे; उसी दौरान उनके हाथ में एक छोटी मछली आ गयी। चूँकि राजा बहुत ही दयालु स्वभाव के व्यक्ति थे इसलिए मछली को पुनः नदी में छोड़ दिया। लेकिन मछली को पानी में छोड़ते ही उन्हें एक आवाज सुनाई दी कि '' मुझे अकेला मत छोड़ो राजन, यहाँ इस नदी में बहुत ही खतरनाक जलीय जीव हैं, जो मुझे जीवित नहीं रहने देंगे। अतः मेरे प्राण की रक्षा करें।
मछली की इस प्रार्थना को सुन राजा को उस पर दया आयी और वो मछली को लेकर अपने घर आ गए। घर लाकर उन्होंने मछली को एक छोटे से बर्तन में जल भर कर उसमें डाल दिया। कुछ समय बाद राजा ये देखकर अचंभित रह गए कि जिस बर्तन में राजा ने मछली को रखा था, वो मछली कुछ ही समय में उस बर्तन से अधिक बड़ी हो गयी। राजा ने फिर उस मछली को बर्तन से निकाल कर एक छोटे तालाब में डाल दिया। इसके बाद भी मछली का आकार बढ़ता ही जा रहा था। इस बार मछली के लगातार बढ़ते आकार को देखकर राजा ने उसे समुद्र में छोड़ना उचित समझा। राजा सत्यव्रत एक तीव्रबुद्धि और ईश्वर भक्त राजा थे, अतः उन्हें ये आभास हो गया कि ये कोई साधारण मछली नहीं है, ये स्वयं नारायण का अवतार है।
अतः उन्होंने मछली के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना की और कहा कि मैं समझ चुका हूँ कि इस मछली के रूप में आप स्वयं है नारायण, तब भगवान विष्णु प्रकट हुए। भगवान विष्णु ने सत्यव्रत से कहा कि संसार में प्रलय आने वाला है तथा आज से ठीक सातवें दिन संसार जब डूबने वाला होगा उस समय मैं तुम्हारा उद्धारकर्ता बनूंगा। सातवें दिन जब पूरा संसार जलमग्न था तभी एक नाव भेजी गई तथा उस नाव को मत्स्य अवतार के साथ बाँध दिया गया।
राजा सत्यव्रत सभी जड़ी-बूटियों, बीजों और सप्त ऋषियों के साथ नाव पर सवार हो गए जहाँ चारों ओर जल ही जल था, उसमें केवल यही एक नाव नजर आ रही थी। नाव को मत्स्य की सहायता से सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया, जहाँ से पुनः सृष्टि का प्रारम्भ हुआ।
वैदिक ज्योतिष में, भगवान विष्णु का मीन/मत्स्य रूप केतु के साथ जुड़ा हुआ है। केतु अंतर्ज्ञान व मुक्ति का ग्रह है, और जिस जल में संसार डूबने वाला था वह भ्रान्ति थी। भगवान ब्रह्मा की रात्रि होते ही संसार में चारों ओर अंधकार छा जाता है और तब भगवान विष्णु की वाणी ही प्रकाश बन मनुष्य को उस अंधकार में डूबने से बचा सकती है।
केतु मछली के सामान हमारी चेतना में तैरने वाली सहज ऊर्जा है, किन्तु ये पूरी तरह से जलमग्न है और यही कारण है कि हम अपनी आध्यात्मिक प्रगति पर अधिक ध्यान नहीं दे पाते हैं। अतः आपको सलाह दी जाती है कि अपने मन की आवाज पर ध्यान केंद्रित करें और उसे सुनने की कोशिश करें।
केतु बिना सर वाला एक ग्रह है जिसके धड़ में ही हृदय स्थित है। भगवान विष्णु की आवाज हृदय ग्रंथि से प्रकट होती है यही कारण है कि सिर की आवश्यकता नहीं होती है। केतु व्यक्ति के कर्म चक्र के आरंभ और अंत का प्रतीक है। यह आध्यात्मिक और रचनात्मक ऊर्जा का भी प्रतिनिधित्व करता है, जिसकी सहायता से मनुष्य सांसारिक चक्र को तोड़ ब्रह्म के साथ जुड़ सकता है।
यहाँ इस कथा में सत्यव्रत आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है और नाव मानव शरीर का जो मत्स्य से बंधने के बाद अपने गंतव्य तक पहुँच सकता है। जब कभी आप अपने जीवन में परेशानी से घिरे हुए होते है और आपको कोई मार्ग नहीं मिल रहा होता है आप स्वयं को किसी महासागर में खोया हुआ महसूस करते हैं तो उस समय केतु/मत्स्य रूप की उपासना करने से यह आपके दबे अंतर्ज्ञान को बाहर लाने में आपकी सहायता करेगा।
ॐ नमो भगवते मत्स्य देवाय।
2. ‘शनि’ ग्रह कुर्म अवतार का प्रतिनिधित्व करता है
भगवान विष्णु के दूसरे अवतार कुर्म ने समुन्द्र मंथन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। समुद्र मंथन की कथा अनुसार, वासुकी नाग क्षीर समुद्र या दूध सागर में स्थित एक विशाल पर्वत मंदराचल के चारों ओर लिपटा हुआ था जिसके माध्यम से समुन्द्र मंथन किया जाना था।
वासुकी नाग के दोनों सिरों को पकड़ कर रस्साकशी के मध्याम से समुंद्र मंथन की प्रक्रिया का शुभारंभ किया गया, जिसमें देवता और असुर दोनों सम्मिलित थे। अब इस समुद्र मंथन की प्रक्रिया में मुश्किल ये आ रही थी कि लगातार नाग के हिलते-डुलते रहने के कारण मंदराचल पर्वत का एक जगह टिके रहना कठिन हो रहा था। ऐसी स्थिति में पर्वत के नीचे किसी कठोर वस्तु का होना आवश्यक था इसलिए सभी ने भगवान विष्णु से इस विषय पर सहायता मांगी।
तब भगवान विष्णु ने कूर्म अर्थात एक कछुए का रूप धारण किया और उस रुप में स्वयं पर्वत के नीचे जा के स्थित हो गए और इस कारण से पर्वत का हिलना डुलना भी बंद हो गया। कछुए की पीठ के ठोस आधार की मदद से समुद्र मंथन हुआ। इस मंथन का प्रमुख उद्देश्य अमृत या शाब्दिक रूप से कहे तो सच्चे विवेकपूर्ण बुद्धि की प्राप्ति थी जो मोक्ष की ओर ले जाती है।
कूर्म का प्रतिनिधित्व शनि करते हैं जो स्वयं कछुए की भांति कठोर है। सही मार्ग की प्राप्ति के लिए शनि का होना आवश्यक है क्योंकि शनि कर्म के अनुसार फल प्रदान करते हैं। शनि कछुए की भांति बाहर के कोलाहल से आपके मन को दूर ले जाने और मन को शांत कर आध्यात्मिक वृद्धि करने में सहायता करते हैं।
शनि ग्रह शरीर से ऊर्जा का व्यय नहीं होने देता। यह ऊर्जा धारण करके शरीर को स्थिर बनाता है, जो कि आध्यात्मिक उत्थान के पथ पर आगे बढ़ने के लिए आवश्यक है। शनि अपनी धीमी गति के लिए भी जाना जाता है लेकिन शाब्दिक रूप में यह शरीर की गति को धीमा कर देते हैं जिससे आपके मन को शांति प्राप्त होती है और आप लंबे समय तक ध्यान मुद्रा में रह सकते हैं। कारण यह जग विदित है कि जितनी अधिक शारीरिक गतिविधि होगी आपका मन उतना ही अशांत रहेगा और मन व्याकुल रहेगा।
शनि धैर्य व सहनशीलता का ग्रह है, और कूर्म या शनि के साथ, व्यक्ति का मन स्थिर हो जाता है और निश्चित ही वो अपने लक्ष्य को भी प्राप्त कर लेता है। इसलिए अब जब कभी आपकी इन्द्रियां आपके नियंत्रण से बाहर हो जाये, या आप अपने निर्धारित लक्ष्य से दूर हो जाएँ तो ऐसी स्थिति में आपको ज्ञात है कि आपको क्या करना है और किसकी सहायता से आपका मन शांत होगा।
ॐ नमो भगवते कूर्म देवाय।
3. राहु 'वराह' अवतार का प्रतिनिधित्व करता है
वराह भगवान विष्णु का तीसरा अवतार है और ये राहु ग्रह से जुड़ा हुआ है। वराह का अर्थ है शुकर, इस अवतार के माध्यम से ही मानव शरीर के साथ परमात्मा का पहला पग धरती पर पड़ा था। मुख शुकर का था लेकिन शरीर इंसान का था।
ऐसी कथा है कि हिरण्याक्ष नाम का एक राक्षस था जो अपनी शक्तियों के माध्यम से पूरी पृथ्वी को लेकर समुद्र के तल में चला गया था। तब भगवान विष्णु वराह के रूप में प्रकट हुए और उस राक्षस के पीछे गए। एक बड़ी भारी युद्ध के बाद भगवान वराह ने हिरण्याक्ष नाम के इस राक्षस को मार डाला और अपनी दांत की मदद से धरती को समुद्र तल से बाहर निकाला।
राहु, जो स्वरभानु दानव का सिर है, भगवान् वराह के अवतार से सम्बंधित है, क्योंकि भगवान विष्णु ने पृथ्वी को समुद्र तल से बाहर लाने के लिए इस अवतार में अपने दांत का उपयोग किया था।
राहु इस जीवन में किये जाने वाले कर्म का प्रतिनिधित्व करता है। इस ग्रह से जुड़े व्यक्ति यात्रा करना पसंद करते हैं इसके साथ ही थोड़े चालाक होते हैं तथा उनमें झूठ बोलने की भी प्रवृति होती है। ऐसे व्यक्ति भौतिक संपत्ति के प्रति भी अपनी रूचि बनाये रखते हैं।
यदि राहु की ऊर्जा को सही दिशा दी जाये और भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह का श्रद्धापूर्वक आह्वान किया जाए तो व्यक्ति मोह-माया से निकलकर अपने जीवन में संतुलन बनाये रखना सीख सकता है। अपने सांसारिक और आध्यात्मिक कर्म के बीच संतुलन बनाये रखना भी सीख सकता है।
ॐ नमो भगवते वराह देवाय।
4. मंगल 'नृसिंह' अवतार का प्रतिनिधित्व करता है
मंगल को लाल ग्रह कहा जाता है और भगवान नृसिंह केसरी अर्थात नारंगी रंग वाले हैं । यह रंग बेहद प्रखर होता है, मंगल और नृसिंह भगवान दोनों ही क्रूर और घातक ऊर्जा संचारित करते हैं। नृसिंह दो शब्द नर और सिंह से मिलकर बना है यहाँ नर से तात्पर्य मनुष्य से है तथा सिंह का अर्थ शेर से है।
नृसिंह भगवान विष्णु का चौथा अवतार है और इनका चेहरा और पंजा शेर का और धड़ इंसान का है।भगवान नृसिंह अदम्य और आक्रामक माने जाते हैं। नृसिंह भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को चोट पहुंचाने वाले हिरण्यकश्यप का वध करके उसको दंड देते हैं।
हिरण्यकश्यप का वध करना सरल नहीं था कारण उसे भगवान ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु न तो दिन में होगी और न ही रात में, न ही महल के अंदर और न ही महल के बाहर, उसे न ही मनुष्य मार सकेगा न ही कोई जानवर। इस प्रकार समय और स्थान की संधि के साथ उसको दंड दिया गया।
नृसिंह के रूप में स्वयं भगवान विष्णु ने उसे सुबह और शाम के बीच की बेला यानी संध्या में महल के चौखट पर मृत्यु प्रदान किया। समय और स्थान जहां सभी द्वंद्व विलीन हो जाते हैं, नरसिम्हा अवतार हमें आत्मा को मुक्त करने और सभी द्वंद्व और विपरीतताओं को पार करने के लिए मूल शक्ति का उपयोग करना सिखाता है।
नृसिंह भगवान मंगल ग्रह से जुड़े हुए हैं, मंगल एक ऐसा ग्रह है जो आतंरिक शक्ति को नियंत्रित करता है। श्री विष्णु ने अपने भक्तों की रक्षा करने और संसार को बुराई से मुक्त करने के लिए नृसिंह का रूप धारण किया था।
नृसिंह को निर्बलों का रक्षक कहा जाता है। जब आप अपने शत्रु पर जीत हासिल नहीं कर पा रहें हो या जीवन की परेशानी खत्म नहीं हो पा रही हो तो आप नृसिंह या मंगल की सहायता से अपने जीवन की परेशानी दूर कर सकते हैं।
ॐ नमो भगवते नरसिम्हा देवाय।
5. बृहस्पति 'वामन' अवतार का प्रतिनिधित्व करता है
राजा बलि ने देवताओं के राजा इंद्र से त्रिलोक को छीन लिया था। उस समय भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर सब पुनः व्यवस्थित किया।
भगवान विष्णु ने वामन यानि एक बौने-ब्राह्मण के रूप में उस स्थान पर प्रवेश किया जहाँ बलि यज्ञ कर रहे थे।वामन देखने में तो छोटे थे किन्तु थे स्वयं भगवान विष्णु के अवतार और तीनों लोको को मिलाने की पूरी क्षमता भी रखते थे।
वामन जी ने बलि को प्रसन्न कर उनसे तीन वरदान मांगे जिसमें उन्होंने अपने तीन पगों में आनेवाले भूमि की मांग की, इस बात पर बलि सहमत हो गए। वामन ने अपने तीन कदमों में तीन लोक को नाप लिया और इस तरह भगवान इंद्र को उनकी सत्ता वापस मिल गयी। इस बात से ये भी प्रमाणित होता है कि रूप भ्रामक होता है। कोई व्यक्ति कैसा भी क्यों न हो सच्चे मन से चाहे तो वह जो चाहे सब पा सकता है।
जैसे वामन छोटे जरूर थे लेकिन विशाल और व्यापक थे।वैसे ही बृहस्पति भी विस्तार का ग्रह है और स्थिरता उन्हें बिलकुल नहीं पसंद है। बृहस्पति परोपकारी है और जीवन से अन्धकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं। भगवान विष्णु का ये अवतार विस्तृत और व्यापक बनने के लिए मन की अंतर्निहित क्षमता का प्रतीक है।
जब आपको कभी भी जीवन में ऐसा महसूस हो कि आपकी प्रतिभा सुस्त पड़ रही है तो वामन का स्मरण करें। वामन अवतार आप में निहित बृहस्पति सदृश ऊर्जा का दोहन करेंगे और वामन के उस तीन विस्तृत कदमों की भांति, आपकी चेतना को भी व्यापक बनाने में सहायता करेंगे।
ॐ नमो भगवते वामन देवाय।
6. शुक्र 'परशुराम' अवतार का प्रतिनिधित्व करता है
परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं और इनसे जुड़ी कई कथाएं भी है।
सबसे अधिक लोकप्रिय कथाओं में से एक है कि एक बार राजा कार्तवीर्य अर्जुन ने बलपूर्वक परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि से इच्छा पूर्ति करने वाली गाय सुरभि को ले लिया था। इसी क्रोध में आकर परशुराम ने राजा को ललकारा और अपने परशु से वही उसका वध कर दिया। अंत में, वह सभी अस्त्रों का त्याग कर देते हैं और योग मार्ग की ओर मुड़ जाते हैं।
शुक्र के संबंध में परशुराम अवतार क्रोध और इच्छाओं के प्रति लगाव का प्रतिनिधित्व करता है। कारण शुक्र ग्रह आपके कई जन्मों से संचित गहरी इच्छा के प्रति लगाव का प्रतिनिधित्व करता है। जब परशुराम ने अपने हथियारों को त्याग कर सांसारिक जीवन के बजाय योग को चुना, तो इसका अर्थ है कि एक ब्राह्मण ने अपनी आध्यात्मिक कुल्हाड़ी के माध्यम से इच्छाओं के इस असीमितता के साथ सभी बंधनों को काट दिया।
जब कभी आप मोह-माया में पड़ने लगे और अपनी लालसाओं के सामने कमजोर महसूस करें तो ऐसी परिस्थिति में भगवान परशुराम का स्मरण करें। शुक्र न केवल प्रेम का ग्रह है बल्कि ये एक आध्यात्मिक ग्रह भी है। परशुराम के साथ शुक्र भी अपनी भौतिकवादी प्रवृत्तियों को तेजी से काट सकता है और आपको सांसारिक मोहमाया से दूर उच्च शक्तियों की ओर ले जा सकता है।
ॐ नमो भगवते परशुरामाय।
7. सूर्य 'राम' अवतार का प्रतिनिधित्व करता है
श्री राम का जन्म इश्वाकु वंश में हुआ था। इश्वाकु वंश को सूर्यवंशी भी कहा जाता है अतः भगवान राम सूर्यवंशी थे। इस परम तेजस्वी कुल के वंशज होने के कारण श्री राम का सूर्य से संबंध होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
भगवान विष्णु का सांतवां अवतार, श्री राम, प्रचंड इच्छाशक्ति और कोमल शब्दों का मेल थे। ऐसा भी माना जाता है कि भगवान विष्णु का सातवां अवतार सूर्य जैसी दिखाई देने वाली सभी चीजों की अध्यक्षता और उन पर शासन करते हैं। सूर्य का प्रतिदिन बिना चुके उदय और अस्त होना, व्यक्ति को उनके जीवन में अपने कर्तव्य से बंधे रहने की शिक्षा देता है। श्री राम भी कर्म की बेड़ियों से बंधे बिना अपना कर्म साकार करते हैं।
राम एक राजकुमार थे जो जंगलों का भ्रमण करते थे, निस्वार्थ भाव से अपने सभी कर्तव्य का पालन किया करते थे , अपने समाज और जनता के लिए अपनी पत्नी को भी त्याग दिया। यह एक सूर्यवंशी की ही शक्ति है और दृढ़ता है जो सूर्य की तरह ही अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं।
जब आपको कभी ऐसा आभास हो कि आपके जीवन में परिस्थिति आपके विपरीत चल रही है और आपकी कठिन परीक्षा की घड़ी है तो आपको अपनी नैतिकता, ईमानदारी पर विश्वास रखना चाहिए और भगवान राम को याद करना चाहिए। वो आपको सभी बाधा से लड़ने का साहस देंगे।
ॐ नमो भगवते रामचंद्राय।
8. चंद्रमा 'कृष्णा' अवतार का प्रतिनिधित्व करता है
श्री कृष्ण महाभारत के नायक थे और उन्होंने अब तक के सबसे महान युद्धों में से एक का निर्देशन किया था।
कृष्ण देवकी और यशोदा के पुत्र थे, राधा के लिए माधव थे, मीरा के लिए वह मोहन थे, रुक्मिणी के लिए उसके पति थे और द्रोपदी के लिए उनके सखा थे।
श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का पूर्ण अवतार कहा जाता है, और इस महान शक्तिशाली व्यक्ति की कई भूमिकाएं थी। इनके कई चरित्रों के साथ, अनेक कहानियां जुड़ी हुई हैं और वह सही अर्थ में चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व करते हैं । चंद्रमा, समुद्र के लहरों व ज्वार-भाटे के ऊपर, पूर्ण और शाश्वत प्रेम की तस्वीर चित्रित करता है, जो कि श्री कृष्ण पर सटीक बैठती है। कारण कृष्ण प्रेम के प्रतीक माने जाते हैं। उनका चंद्र मुख उनकी माताओं, गोपियों और पत्नियों के लिए अत्यंत प्रिय था।
श्री कृष्ण जगद्गुरु है, सर्वव्यापक शिक्षक हैं जो सांसारिक जीवन के उतार-चढ़ाव को जानते हैं और चतुराई से परम ब्रह्म मार्ग पर प्रशस्त कर सकते हैं।
जब कभी आप अपने भौतिक जीवन में अच्छे संतुलन के साथ आध्यात्मिकता की तलाश कर रहे हों और शाश्वत प्रेम को जानना चाहें , तो आपको भगवान कृष्ण का स्मरण करना चाहिए। चंद्रमा से भी सीख लेनी चाहिए जो आपका मार्गदर्शन करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
9. बुध 'बुद्ध' अवतार का प्रतिनिधित्व करता है
भगवान विष्णु का जन्म माया और शुद्धोधन से सिद्धार्थ के रूप में हुआ था। सिद्धार्थ के जन्म के समय भविष्यवक्ताओं ने उनके पिता शुद्धोदन को चेतावनी दी थी कि, ' उसे अपने दुख और पीड़ा को देखने न दें, अन्यथा वह शासन नहीं करेगा और आपके राज्य को छोड़ देगा'। शुद्धोधन ने अपने बेटे के दुःख और पीड़ा को रोकने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने सिद्धार्थ को सभी दुखों से दूर सबसे अलग अपने एक महल में रखा। किन्तु नियति की कुछ और ही इच्छा थी।
एक दिन अपने घर के बरामदे पर खड़े होकर सिद्धार्थ ने देखा कि एक मृत व्यक्ति को चार लोग एक अर्थी पर ले जा रहे हैं और उसी क्षण सिद्धार्थ ने अपने पिता द्वारा प्रदान की गयी सभी सुख-सुविधा का त्याग कर दिया और वन को चले गए। सिद्धार्थ, आध्यात्मिकता प्राप्त करने के बाद प्रबुद्ध व्यक्ति, बुद्ध बन गए।
बुध ग्रह भगवान बुद्ध का प्रतिनिधित्व करता है और बुद्धि का स्वामी है। बुद्ध ने अपनी सर्वोच्च बुद्धि का प्रयोग किया और मध्यम मार्ग और अष्टांग मार्ग का प्रतिपादन किया।
बुद्ध भगवान विष्णु के नौवें अवतार हैं, और वो किसी भी विपरीत परिस्थिति में भी धैर्य से काम लेते हैं, अपने मन को शांत बनाये रखते हैं। अब कभी जब आपका मन अशांत होगा या आपका मन धैर्य के बाहर होगा तो आपको सच्चे मन से बुद्ध का स्मरण करना होगा, ऐसा करने से आपके मन को शांति प्राप्त हो सकती है।
ॐ नमो भगवते बुद्ध देवाय।
भगवान विष्णु और नौ ग्रहों रूप में उनके सभी नौ अवतार जीवन जीने का तरीका बताते हैं। हर अवतार अपने पहले वाले अवतार से अलग है और जीवन जीने का अलग मंत्र भी देते हैं। प्रत्येक अवतार के अर्थ को अपने जीवन में लागू करने के लिए, स्थिति की जांच करें और ध्यान इस बात पर दें कि उस विशेष क्षण में आपके लिए क्या आवश्यक है। कुछ मायनों में भगवान विष्णु के अवतार और ग्रह वर्तमान में जीने के लिए हमारी ग्रहणशीलता और तीक्ष्णता को और बढ़ाते हैं।
आपको इस समय क्या चाहिए? क्या आपको अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करने की आवश्यकता है? क्या आप अपनी नैतिकता पर टिके रहना चाहते हैं या सिर्फ प्रेम करने तथा जियो और जीने दो जैसी नैतिकता को लागू करना चाहते हैं?
दिन के हर क्षण का अपना एक अलग आनंद होता है और आपको उसका अधिकतम लाभ उठाना चाहिए। दिन के उस विशेष क्षण को अनुभव करके आप उस क्षण के अनुसार भगवान विष्णु के विशेष अवतार का आह्वान कर सकते हैं। यह हमें आत्म-संयम सिखाएगा और सुचारु रूप से जीवन की परेशानियों को दूर करने की भी शिक्षा देगा।
भगवान विष्णु एक सच्चे गुरु के रूप में है, जो जीवन के हर क्षण का अधिकतम लाभ उठाने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी विशेषताओं को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करें।
सम्बंधित लेख - विष्णु सहस्रनाम जाप के लाभ
Share article:
और देखें
वैदिक ज्योतिष
Shani Gochar 2023 : 30 वर्ष बाद शनि देव का स्वराशि कुंभ में प्रवेश, जानें शनि का गोचर कैसे करेगा सभी राशियों को प्रभावित ?
सूर्य ग्रहण
सूर्य ग्रहण 2023: क्या यह भारत में दिखाई देगा?
नागपंचमी
Nag Panchami 2023: शुभ मुहूर्त व पूजन विधि के साथ जानें कालसर्प दोष शांति हेतु इसकी महत्ता
वैदिक ज्योतिष
मंगल ग्रह का कन्या राशि में गोचर: आपकी राशि पर कैसा प्रभाव?
वैदिक ज्योतिष
शनि जयंती 2024: जानें शनि देव का महत्व और कैसे प्राप्त करें उनका आशीर्वाद
24 घंटे के अंदर पाएं अपना विस्तृत जन्म-कुंडली फल उपाय सहित
आनेवाला वर्ष आपके लिए कैसा होगा जानें वर्षफल रिपोर्ट से
वैदिक ऋषि के प्रधान अनुभवी ज्योतिषी से जानें अपने प्रश्नों के उत्तर
विशेष लेख
नागपंचमी
वैदिक ज्योतिष
वैदिक ज्योतिष