वैदिक ज्योतिष के 5 श्रेष्ठ उपाय: यंत्र, रुद्राक्ष, रत्न, यज्ञ और जप

हमारे जन्म के समय अंतरिक्ष में स्थित ग्रहों की स्थिति के अनुसार हमारी जन्म कुंडली तैयार की जाती है। इसी जन्म कुंडली का अध्यन करके आपके भविष्य की भविष्यवाणी की जाती है। इसे ज्योतिष शास्त्र में ज्योतिष भविष्यवाणी कहा जाता है, और ये वैदिक ज्योतिष का ही हिस्सा है।
क्या आपने कभी सोचा है कि आपका पिछला जीवन कैसा था? प्राकृतिक नियम के अनुसार, हमारे पिछले जन्म के कर्मों के परिणाम हमारे वर्तमान जन्म कुंडली में प्रदर्शित होते हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हमारे जन्म-तिथि और जन्म-स्थान यूँ ही नहीं है बल्कि हमारे पिछले जन्म के कर्म, वातावरण, परिवार का प्रभाव है जिसके अंतर्गत हमें यह वर्तमान जीवन प्राप्त हुआ है।
हमारे पिछले जन्म के गलत कर्म के परिणाम ही, इस जन्म में पाप और अशुभ ग्रहों के रूप में प्रकट होते हैं। इन सब गतिविधियों का प्रभाव हमारे जीवन पर नकारात्मक रुप से पड़ता है। हमें हमारे पिछले जन्म के कर्मों के अवांछित परिणामों को सुधारने के लिए, या पाप को कम करने के लिए, कुछ शुभ उपाय करने होते हैं, इसे उपचारात्मक उपाय कहा जाता है और ये वैदिक ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
वैदिक ज्योतिष के अंतर्गत कुछ प्रभावी उपाय निम्न है:
1. यंत्र
संस्कृत में ‘यंत्र’’ का अर्थ साधन या उपकरण है। यंत्र एक विशेष प्रकार की ज्यामितीय संरचना है, जो मंत्रों द्वारा ऊर्जावान होती है। इन यंत्रों को शुभ मुहूर्त में विधियों के माध्यम से सक्रिय किया जाता है। यंत्र को मंत्रों के माध्यम से अधिक प्रभावी बनाया जाता है।
यंत्र आपके ध्यान को केंद्रित करने में, आपकी सोचने की क्षमता को और अधिक बेहतर बनाने में आपकी सहायता करता है।
किसी विशेष यंत्र पर ध्यान केंद्रित करने से आपके मन को शांति प्राप्त होती है और आप मानसिक रुप से स्थिर महसूस करते है, जो आपको परमात्मा से जुड़ने में आपकी मदद करता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार यंत्र की शक्तिशाली ऊर्जा सभी नकारात्मक प्रभाव और सभी बुरी शक्तियां को आप से दूर करता है।
यंत्र को सक्रिय करने की प्रक्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसे ‘प्राण प्रतिष्ठा’ कहा जाता है। प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया किसी विद्वान ज्योतिष के द्वारा किया जाना चाहिए। वैदिक रीति के अनुसार प्राण प्रतिष्ठा में यंत्र से सम्बंधित इष्ट देव के मन्त्रों के जाप के द्वारा अनुष्ठान किया जाता है, उसके बाद विधि अनुसार पवित्र अग्नि में हवन कर आहुति अर्पित की जाती है। इसके बाद सम्पूर्ण सभी विधि विधान के साथ पूजा सम्पन्न कर इसे पूजा स्थान पर स्थापित किया जा सकता है। प्राण प्रतिष्ठा यंत्र को ऊर्जावान व सक्रीय बनाती है ।
आप यंत्र को छोटे आकार में विशिष्ठ मंत्रों के उच्चारण के बाद धारण भी कर सकते हैं। आप यदि प्रतिदिन सच्चे मन से यंत्र की पूजा करते हैं, उसका ध्यान करते हैं, और स्वयं को पूरी तरह से समर्पित कर देते हैं तो आपको इस यंत्र के अनेक लाभ प्राप्त हो सकते हैं।
यह यंत्र न केवल आपके जीवन के अशुभ प्रभाव को कम करता है बल्कि आपके खराब स्वभाव, पुरानी बीमारी को आप से दूर करने में आपकी सहायता करते हैं। यंत्र आपकी गरीबी से छुटकारा पाने, आपके बिगड़े संबंधों को सुधारने और आपके डर पर नियंत्रण पाने में आपकी सहायता करेगा। आपके जीवन में सौभाग्य, सफलता, समृद्धि प्रदान करके आपको आनंदमय जीवन व्यतीत करने में सहायक हो सकता है।
2. रुद्राक्ष
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, रुद्राक्ष उपचारात्मक उपाय का एक और प्रभावी रूप है। रुद्राक्ष दो शब्दों 'रुद्र' और 'अक्ष' के मेल से बना है इसमें 'रुद्र' भगवान शिव का एक नाम है; 'अक्ष' जिसका अर्थ है 'आंसू'। इस प्रकार ऐसी मान्यता है कि रुद्राक्ष का निर्माण भगवान शिव के आंसू से हुआ था।
रुद्राक्ष में दैवीय शक्ति और उपचार के गुण विद्यमान रहते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करता है, उसको कभी कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता क्योंकि उसकी रक्षा स्वयं महादेव करते हैं। रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति को अनेक लाभों की प्राप्ति होती है।
रुद्राक्ष में अलौकिक ऊर्जा होती है जो आपकी कुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकती है। रुद्राक्ष के कई प्रकार और कई मुखी रुद्राक्ष होते हैं, प्रत्येक व्यक्ति को उनके ग्रहों की स्थिति के अनुसार रुद्राक्ष का चुनाव कर उसे धारण करना चाहिए। तभी आपको उसके सभी लाभ प्राप्त होंगे।
रुद्राक्ष को भी सम्पूर्ण विधि - विधान के साथ पूजा करके प्राण प्रतिष्ठित किया जाता है। । रुद्राक्ष को माला के रूप में धारण किया जा सकता है। रुद्राक्ष की माला को दूध, घी, तेल से साफ और शुद्ध किया जाता है और फिर मंत्रों के माध्यम से सक्रीय किया जाता है।
रुद्राक्ष के दानों में चिकित्सीय गुण मौजूद होता है । यह विद्युत चुम्बकीय तरंगें उत्पन्न करते हैं इसलिए रुद्राक्ष की माला बना कर इसे गले में धारण किया जाता है ताकि ये आपके हृदय को स्पर्श कर सके। यह मस्तिष्क के कुछ रसायनों को नियंत्रित करके ह्रदय व मस्तिष्क को शांत करता है।
इस बात की पुष्टि तो चिकित्सा विज्ञान ने भी की है कि रुद्राक्ष में चिकित्सीय गुण मौजूद होते हैं, अतः इसको धारण करने से आपको स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होंगे। अतः आपको यह सलाह दी जाती है कि जब भी रुद्राक्ष का चयन करें, तो विश्वसनीय व प्रमाणित रुद्राक्ष का ही चयन करें,यह आपके जीवन के अशुभ परिणामों और दुष्प्रभावों को दूर करने में आपकी मदद करता है।
रुद्राक्ष पर भगवान शिव का आशीर्वाद माना जाता है तो इसको धारण करने से साक्षात शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जो व्यक्ति रुद्राक्ष को धारण करते हैं भगवान शिव की कृपा से उनके जीवन के सभी दुख दूर होते हैं और उन्हें चमत्कारिक लाभ प्राप्त होते हैं। रुद्राक्ष का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए अनुभवी ज्योतिषियों की सहायता से अपनी कुंडली के अनुसार एक प्रामाणिक रुद्राक्ष का चयन करना बहुत महत्वपूर्ण है। तभी आपको इसका पूरा लाभ प्राप्त होगा।
3. रत्न
रत्न भी लोकप्रिय रूप से वैदिक ज्योतिष के प्रमुख उपाय के रूप में जाना जाता है। ग्रहों के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए रत्नों का प्रयोग किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक ग्रह का एक संबंधित रत्न होता है। इसलिए अपने कुंडली के अनुसार रत्न धारण करने से व्यक्ति के जीवन से सभी नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं तथा अनुकूल परिणामों की प्राप्ति होती है।
रत्नों के माध्यम से ऊर्जा का आदान-प्रदान होता है। ये शक्तिशाली रत्न सभी दिशाओं में ऊर्जा को फैलाते हैं और चारों ओर से सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित भी करते हैं।
माणिक्य, पन्ना, हीरा, मोती, लहसुनिया, नीलम, पुखराज इत्यादि कई प्रकार के रत्न होते हैं । आपको इन रत्नों के लाभ प्राप्त करने के लिए अपने ग्रहों के अनुसार सही और प्रभावी रत्न धारण करना होगा।
शुद्ध और पवित्र रत्न धारण करने से आपको इसके प्रभावी लाभ प्राप्त होंगे। किसी भी रत्न को धारण करने से पहले उस रत्न की शुद्धि करना बहुत आवश्यक है। रत्न की शुद्धि के लिए उसे रात भर पानी से भरे किसी चांदी, तांबे या सोने के बर्तन में छोड़ दें। इन रत्नों में से कुछ रत्नों को आप रात भर कच्चे दूध, दही, शहद, चीनी और घी के मिश्रण में भी भिगो कर छोड़ सकते हैं। इस शुद्धिकरण की प्रक्रिया के बाद शुभ दिन व शुभ समय पर रत्न को धारण करना चाहिए। रत्न के बेहतर परिणाम के लिए आप रत्न के आधार पर उसे सोने, चांदी, या तांबे की अंगूठी में इस तरह जड़वाएं कि रत्न का आपकी त्वचा के साथ भी संपर्क बना रहे।
आपको पूरी विधि अनुसार रत्न धारण करना चाहिए, अत्यंत बेहतर परिणाम के लिए आपको उस रत्न से संबंधित ग्रह के मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए। किसी भी रत्न को अनुभवी ज्योतिष के परामर्श पर ही धारण करें। इन रत्नों को अंगूठी, हार या कंगन के रूप में धारण करने से जीवन से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं तथा सफलता, खुशी और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
4. यज्ञ
यज्ञ का अर्थ है 'पूजा' या 'दान'। वेद-शास्त्र में अग्नि को पवित्र माना जाता है, और इसी अग्नि की पूजा करके या उसके चारों ओर हवन इत्यादि कर के यज्ञ किया जाता है।यज्ञ पूजा का ही एक रूप है जिसमें अग्नि को भोग लगाया जाता है जिसके माध्यम से देवी-देवताओं को प्रसन्न करने की कोशिश की जाती है।
व्यक्ति के मन की इच्छापूर्ति के लिए या किसी प्रकार के संकट को दूर करने के लिए, उपाय के रूप में लोग अनुभवी पंडितों या पुजारियों के द्वारा धार्मिक रूप से पूरी श्रद्धा के साथ यज्ञ करते हैं। यज्ञ के दौरान भोग चढ़ाने का भी एक महत्व और अर्थ होता है। भोग चढ़ाने का अर्थ है कि आप किसी भी प्रकार के लोभ-लालच या स्वार्थ से दूर होकर निस्वार्थ हो रहे हैं और उसी निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद भी करेंगे।
यज्ञ करने से प्रतिकूल ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम करने में सहायता मिलती है और आपको मन वांछित फल की भी प्राप्ति होती है। महत्वपूर्ण यज्ञों में से कुछ महत्वपूर्ण यज्ञ नवग्रह शांति यज्ञ, महामृत्युंजय यज्ञ, अश्वमेध यज्ञ और राजसूय यज्ञ इत्यादि हैं।
5. जप
भगवान का नाम लेने के लिए, उनको स्मरण करने के लिए मंत्रों का जाप किया जाता है। जाप के माध्यम से भगवान के नाम को दोहराया जाता है। आप अपने इष्टदेव के नाम का भी जाप कर सकते हैं।
जप के माध्यम से ईश्वर प्रसन्न होते हैं, प्रतिकूल ग्रह भी शांत होते है, और आपको ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इन मंत्रों को अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए, आँख बंद करके भी पढ़ा जा सकता है। मंत्रों का जाप विभिन्न प्रकार के माला पर भी किया जाता है।
आपकी ग्रहों की स्थिति तथा कुंडली के आधार पर अनुभवी ज्योतिष आपको सही मंत्र, उसके अर्थ, उच्चारण और जप करने की विधि बता सकते हैं। वांछित फल की प्राप्ति के लिए इन मंत्रों का कितनी बार और कितने दिनों तक जप करना है इन सब चीजों की जानकारी भी अनुभवी ज्योतिष दे देते हैं। कुछ प्रमुख मंत्रों में शिव मंत्र, गायत्री मंत्र और बीज मंत्र इत्यादि शामिल हैं।
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