लग्न क्या होता है और इसका क्या महत्व होता है? जानिए 10 रोचक तथ्य

ज्योतिष विज्ञान में कुंडली के प्रथम भाव/घर को लग्न भाव और उससे सम्बंधित राशि को लग्न या उदय राशि कहा जाता है । लेकिन, लग्न है क्या? व्यक्ति के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित होती है, वही राशि व्यक्ति का लग्न होता है; ये जन्म के समय जहाँ पर जिस स्थिति में ग्रह नक्षत्र होते हैं उसी के आधार पर तय होता है। इस बात को यदि सरल शब्दों में कहा जाए तो, जब आत्मा शरीर का रूप धारण करके पहली बार पृथ्वी पर आती है उसे लग्न कहते हैं।
आमतौर पर हम सभी अपनी जन्म राशि को देखकर अपने भविष्य के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं, लेकिन राशि से अधिक महत्वपूर्ण हमारा लग्न होता है, क्योंकि राशि के माध्यम से हम केवल ये जान सकते हैं कि व्यक्ति का व्यवहार कैसा है, उसकी रूचि क्या है तथा उसकी विशेषताएं क्या है।
लेकिन लग्न के द्वारा किसी भी व्यक्ति के जीवन में जो भी घटनाएं हो सकती हैं, उनका प्रारूप कैसा होगा इस बात का पता लगाया जा सकता है। यही कारण है कि राशि से अधिक महत्वपूर्ण लग्न को माना जाता है। देखा जाए तो लग्न दो तत्व जन्म का समय तथा स्थान का संयोजन है। एक कारण यह भी है कि जन्म कुंडली बनाते समय व्यक्ति के जन्म का स्थान तथा सही समय जरूरी होता है।
हमारे निःशुल्क वैदिक ज्योतिष रिपोर्ट के साथ अपने व्यक्तित्व को जानने के साथ, अपने दोषों और अनुकूल व प्रतिकूल समय आदि का गहन विश्लेषण प्राप्त करें। देखें कि आपकी कुंडली आपके जीवन के प्रत्येक पक्ष के बारे में क्या कहती है।
लग्न के विभिन्न नाम तथा उनके अर्थ
“लग्न” संस्कृत का एक शब्द है, जिसके कई अर्थ हैं, मूल रूप से लग्न शब्द 'लैग' शब्द से बना है, जिसका अर्थ है किसी वस्तु, व्यक्ति या अवधारणा का पालन करना।
जन्म कुंडली में लग्न का अर्थ है स्वयं को अपने कर्म से जोड़ना। मुहूर्त में इसका अर्थ है स्वयं को किसी कार्य से जोड़ना। मृत्यु के समय, यह शब्द जीवन में किसी के कर्म के फल और उसके बाद के जीवन का पालन करने या खुद को संलग्न करने का संकेत देता है। लग्न का एक अर्थ शुभ मुहूर्त भी होता है। हम जिस संदर्भ में चर्चा कर रहे हैं यहाँ लग्न शब्द किसी के जन्म की शुभ घटना को दर्शाता है।
लग्न राशि चक्र के पहले भाव के रूप में प्रारंभ को भी संदर्भित करता है, इसे ही प्रथम भाव भी कहा जाता है। प्रथम भाव के लिए कुछ महत्वपूर्ण नाम और भी होते हैं जिसमें से कुछ इस प्रकार है: लग्न जिसका अर्थ है पालन करना या शुभ, दूसरा नाम मूर्ति जिसका अर्थ है छवि या आकृति, तीसरा नाम है अंग जिसका अर्थ है शारीरिक अंग, चौथा नाम उदय जिसका अर्थ है प्रकट होना। इस तरह लग्न को और भी कई नामों से जाना जाता है।
लग्न का महत्व
ये तो अब हम सभी जान चुके है कि कुंडली में प्रथम भाव लग्न के नाम से जाना जाता है, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व तथा स्वभाव को दर्शाता है। ऐसे में देखा जाए तो कहीं न कहीं आप स्वयं भी लग्न ही हैं, क्योंकि कुंडली में लग्न के माध्यम से ही आपके स्वभाव, आकार-प्रकार, शारीरिक बनावट, आपके व्यक्तित्व का अंदाजा लगाया जा सकता है।
आप स्वभाव से क्रोधी हैं, प्रेमी हैं, अनुशासनप्रिय हैं, संवेदनशील हैं या फिर धार्मिक एवं दयालु हैं, या फिर गंभीर, इन सभी दिलचस्प विषयों की जानकारी आपकी जन्म कुंडली के लग्न भाव से समझा जा सकता है।
इसके साथ ही आपका कद ऊंचा है या छोटा, आपका शरीर कैसा होगा, चेहरे की आभा कैसी हो सकती है इसका अनुमान भी जन्म कुंडली के प्रथम भाव अर्थात लग्न के माध्यम से लगाया जा सकता है।
इसके अलावा लग्न से जुड़े अन्य भाव एवं ग्रहों का विचार करके आपसे जुड़े अन्य विषयों को भी समझा जा सकता है। अत: लग्न भाव या प्रथम भाव, जन्मकुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव होता है। यह कुंडली के केंद्र और त्रिकोण दोनों को स्वयं में समाहित किए हुए है, यही कारण है कि इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
लग्न की राशि आमतौर पर हर दो घंटे पर बदलता रहता है। लग्न को ज्योतिष का आधार भी कहा जा सकता है क्योंकि यह जन्म कुंडली के अन्य भावों से भी जुड़ा हुआ है।
लग्न: स्वयं का प्रतिनिधित्व कर्ता
जिस प्रकार लग्न कुंडली के D1 भाग में स्वयं का प्रतिनिधित्व करता है, उसी प्रकार अन्य कुंडली जैसे प्रश्न कुंडली, मंडल कुंडली आदि में भी लग्न की उपस्थिति देखी जाती है।
हम जो भी सोचते हैं या जिस प्रकार हम सोचते हैं, हमारे जीवन की भौतिक परिस्थितियां ये सभी राशि चक्र D1 में लग्न की उपस्थिति के कारण है।
विवाह या निजी जीवन का प्रतिनिधित्व करने वाला D9 में भी लग्न की उपस्थिति है। जिसका प्रभाव जीवन में देखा जा सकता है। रोजगार, कार्य, पालन-पोषण इत्यादि के विषय की जानकारी D10 में लग्न की उपस्थिति के कारण संभव है।
कैसे पता करें कि आपका लग्न कौन-सा है?
जिस प्रकार 12 राशियां होती है, ठीक उसी प्रकार 12 लग्न भी होते हैं, जैसे कोई व्यक्ति मेष लग्न का है तो कोई मीन लग्न का भी हो सकता है। ऐसे में कैसे पता करें कि आपका लग्न कौन-सा है?
लग्न के निर्धारण का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है जन्म का समय तथा स्थान ज्ञात होना। जन्म समय और स्थान के आधार पर जब आपकी कुंडली तैयार हो जाती है। आपकी कुंडली चक्र में ऊपरी भाग में लग्न चक्र लिखा होगा, इस चक्र में आपको देखना है कि पहले भाग में कौन-सा अंक लिखा हुआ है, यदि उस स्थान पर 1 लिखा हुआ है अर्थात आपका लग्न मेष लग्न है, यदि 2 लिखा है तो आपका लग्न वृषभ लग्न है।
इसी प्रकार 12 अंक तक राशि चक्र की संख्या के आधार पर इंगित अंकों के माध्यम से आप अपने लग्न का पता कर सकते हैं।
पक्का लग्न
अपनी बुद्धि का उपयोग किस प्रकार करना है? यदि आप इसका पता लगाना चाहते हैं तो, उसके लिए आपको अपने लग्नेश की जांच करनी होगी। आप चाहे कितने ही बुद्धिमान क्यों न हो, जब तक बुद्धि का सही उपयोग नहीं कर पाए तो उसका कुशल होना भी व्यर्थ हो जाता है।
सही समय पर बुद्धि का उपयोग कैसे करें, सही निर्णय कैसे लें? इस सब में आपकी मदद पक्का लग्न या लग्नेश करेगा। पक्का लग्न परिस्थियां भी बताता है तथा उससे लड़ने की क्षमता भी प्रदान करता है।
परिस्थिति के अनुसार प्रतिक्रिया कैसे दें, सही निर्णय कैसे लें, कोई भी कार्य की शुरुआत कैसे करें? इस सब तरह की परिस्थितियों का सामना करने में आपको पक्का लग्न सहायता प्रदान करेगा। इसके साथ लग्न देवता भी आपकी मदद करेंगे।
अपने लग्न की रक्षा कैसे करें?
लग्नों की रक्षा आप लग्न स्वामी की सहायता से की जाती है। लग्न स्वामी की उपस्थिति जहाँ भी होती है, वो वहां कार्य को करने तथा किसी परिस्थिति से निकलने के साधन इंगित कर देते हैं। ये तो हम सभी जानते हैं कि कुंडली में सभी स्थितियां अच्छे नहीं होते किन्तु सभी स्थितियां खराब भी नहीं होते, ऐसे में लग्न स्वामी की मदद से उन स्थितियों का सामना किया जा सकता है।
लग्न स्वामी का केंद्र या कोने में स्थित होना काफी शुभ माना जाता है। कुंडली के दूसरे, छठे, आठवें तथा बारहवें भाव में लग्न स्वामी की उपस्थिति को शुभ नहीं माना जाता है, क्योंकि यह स्वयं के लिए खराब निर्णय ले सकता है।
दूसरे भाव में उपस्थित लग्न स्वामी के विपरीत प्रभाव को अच्छे खान-पीन के माध्यम से कम किया जा सकता है। कुंडली के आठवें भाव में लग्न स्वामी का उपस्थित होना भी शुभ नहीं माना जाता है, ऐसा माना जाता है कि इस स्थिति में व्यक्ति के जीवन में शनि का प्रभाव मजबूत होता है जिससे कोई भी कार्य संपन्न होने में समय लगता है, स्वास्थ्य खराब होता है, कर्ज भी बढ़ सकता है। लग्न स्वामी जब बारहवें भाव में स्थित हो तो, व्यक्ति की स्वयं की पसंद ही उसके विनाश का कारण बन जाती है।
लग्न पर ग्रहों का प्रभाव
यदि आपके लग्न में किसी ग्रह की उपस्थिति है तो, उस ग्रह का प्रभाव सीधा आपके मस्तिष्क पर पड़ेगा। ग्रह शब्द ग्रहण से लिया गया जिसका अर्थ है ग्रहण करना या आकार देना। ग्रह आपकी दिशा निर्देशित करता है। लग्न पर ग्रहों का प्रभाव आपके व्यक्तित्व पर एक छाप छोड़ता है।
प्रत्येक ग्रहों की उपस्थिति का अपना-अपना अलग प्रभाव होता है, जिसका असर व्यक्ति पर होता है। यदि आपके लग्न में दो या दो से अधिक ग्रह उपस्थित है तो, उनके द्वारा बन रहे योग की जांच अवश्य करवाएं। इस ग्रहों की उपस्थिति का प्रभाव आपके स्वभाव पर सबसे अधिक पड़ेगा।
लग्न का कारक
लग्न का कारक ग्रह सूर्य है। अब यदि लग्न का कारक सूर्य है तो, इसका अर्थ है कि आपका कारक भी सूर्य है। सूर्य आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है और यही एक कारण है कि सूर्य के माध्यम से कुंडली का विश्लेषण कर सकते हैं। कुंडली के प्रथम भाव में सूर्य व्यक्ति के स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व करता है।
यदि सूर्य की स्थिति अच्छी हो तो, व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा होगा। इसके साथ ही अन्य लाभ भी आपको प्राप्त होंगे। यदि सूर्य की स्थिति अच्छी नहीं हुई तो, इसका बुरा प्रभाव आपके जीवन पर आपके स्वास्थ्य पर पड़ सकता है।
लग्न से जुड़ी समस्या तथा उसके उपाय
यदि आपकी कुंडली में लग्न के कारण कोई समस्या उत्पन्न हो रही है तो, इसका सीधा प्रभाव आपके जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। लग्न के नकारात्मक प्रभाव के कारण निम्न कष्टों का सामना करना पड़ सकता है
1. गंधान्त लग्न
गंधान्त लग्न के कारण आपको आर्थिक जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। इसका अशुभ प्रभाव व्यक्ति के माता-पिता के जीवन पर देखा जा सकता है।
2. संधि लग्न
संधि लग्न के कारण शारीरिक कष्ट का सामना करना पड़ सकता है।
लग्नेश के नकारात्मक प्रभाव पर ध्यान देते हुए निम्न बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए
1. कुंडली में मारक कारक की उपस्थिति होने से लग्न स्वामी भी आपकी बहुत अधिक सहायता नहीं कर पायेंगे।
2. दिग्बल की उपस्थिति होने पर लग्न स्वामी कोई भी सही मार्ग दिखाने में सफल नहीं हो पायेंगे।
3. यदि लग्न स्वामी शापित हो तो, व्यक्ति कोई भी सही निर्णय नहीं ले पायेगा। गलत निर्णय लेने के कारण लग्न की रक्षा करने में भी व्यक्ति असफल हो सकता है।
उपाय
ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक दोष, कष्ट का उपचार मिल ही जाता है। कई बार जीवन की परेशानियों को दूर करने के लिए तथा कुंडली से दोष दूर करने के लिए कुछ आवश्यक उपाय करने की आवश्यकता होती है।
यदि आपके जीवन में लगातार परेशानियां बनी चली आ रही है तो, किसी ज्ञानी ज्योतिष से अपनी कुंडली की जांच करवा लें, यदि उसमें कोई दोष मिल रहा है तो, उसी ज्योतिष की परामर्श से आवश्यक उपाय की जानकारी भी प्राप्त करें।
ज्योतिष द्वारा बताये गए उपाय को यदि आप सही विधि द्वारा संपन्न करते हैं तो, उसका परिणाम आपको अवश्य ही प्राप्त होगा। आपके सभी दोष संभवतः दूर हो जायेंगे तथा आप एक अच्छा जीवन व्यतीत करेंगे।
Share article:
और देखें
श्रावण
श्रावण मास 2023: जाने 19 वर्ष पश्चात आने वाले इस अलौकिक श्रावण मास की महत्वपूर्ण बातें
वैदिक ज्योतिष
क्या आप जानते हैं कि आपकी कुंडली के ग्रह कैसे आपके विवाह व जीवनसाथी को प्रभावित करते हैं ?
वैदिक ज्योतिष
सूर्य का कुंभ राशि में गोचर 2023: आपकी राशि पर इसका प्रभाव और उपाय
वैदिक ज्योतिष
सिंह राशि में सूर्य गोचर 2023: आपके जीवन में नए उत्सव का समय
होली
होली 2025: रंगों का त्योहार, धार्मिक महत्व, पूजा विधि और विशेष उपाय
24 घंटे के अंदर पाएं अपना विस्तृत जन्म-कुंडली फल उपाय सहित
आनेवाला वर्ष आपके लिए कैसा होगा जानें वर्षफल रिपोर्ट से
वैदिक ऋषि के प्रधान अनुभवी ज्योतिषी से जानें अपने प्रश्नों के उत्तर
विशेष लेख
योग और ज्योतिष
नागपंचमी
वैदिक ज्योतिष