वट सावित्री पूर्णिमा व्रत: प्रेम, समर्पण और आदर्शता का प्रतीक

वैसे तो प्रत्येक पूर्णिमा तिथियों का अपना एक अलग महत्व होता है तथा पूरे वर्ष में कुल 12 पूर्णिमा तिथियां होती हैं। इन्हीं 12 पूर्णिमा तिथियों में से ज्येष्ठ माह की वट पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां व्रत रखती हैं तथा अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं।
वट सावित्री की एक पूजा कृष्ण पक्ष में तथा दूसरा शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। साल 2023 में 19 मई को अमावस्या वट सावित्री व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारतीय भूभाग में मनाया गया है। दक्षिण भारत के अधिकांश क्षेत्रों में वट सावित्री पूर्णिमा व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा दिन मनाया जायेगा। आज हम वट सावित्री पूर्णिमा के विषय में जानकारी प्राप्त करने वाले हैं।
शुभ मुहूर्त तथा तिथि
इस वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि वाले दिन 03 जून के प्रातःकाल 11 बजकर 16 मिनट पर होगा तथा इस शुभ मुहूर्त का समापन 04 जून 2023 को प्रातःकाल 09 बजकर 11 मिनट पर समाप्त हो जायेगा। वट सावित्री पूर्णिमा व्रत 03 जून 2023 को रखा जायेगा।
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत का महत्व
इस विशेष दिन पर शुभ मुहूर्त में सभी विवाहित औरतें वट (बरगद)वृक्ष की पूजा करती है तथा अपने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए वृक्ष के चारों ओर रक्षा धागा बाँधती हैं। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व होता है।
ऐसा माना जाता है कि वट वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है इसलिए जो स्त्री इस दिन वट के वृक्ष की पूजा करती है उसे सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पूजा विधि
वट सावित्री पूर्णिमा के दिन विवाहित स्त्रियां सुबह उठकर स्नान करके नए वस्त्र धारण करके सोलह शृंगार करती है। इसके बाद फूल, धुप-दीप, फल, कच्चा दूध, सिंदूर, प्रसाद इत्यादि से थाली सजा लें। इसके बाद वट (बरगद) के पेड़ के नीचे जाकर सारी सामग्री को सजा लें।
पेड़ के जड़ में जल अर्पित करें, प्रसाद का भोग लगाए। फिर बांस के पंखे से पेड़ की जड़ में हवा करें। बरगद के पेड़ से के पत्ता तोड़ कर उसे अपने बालों में लगाए। उसके बाद पेड़ से रक्षा धागा बांध कर 3, 5 या 11 बार बरगद के पेड़ की परिक्रमा करें तथा अपने पति लंबी उम्र की कामना करें।
इसके बाद सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ करें या इस कथा को आप किसी के द्वारा सुन भी सकते हैं। पेड़ के नीचे पूजा समाप्त करने के बाद घर जाकर उसी पंखे से पति को हवा करें। इसके बाद अपने पति से आशीर्वाद लें। वट सावित्री की पूजा के साथ-साथ इस दिन व्रत करने की भी प्रथा है। इस व्रत के दौरान स्त्रियां पूजा के बाद सूर्यास्त से पूर्व मीठा भोजन कर सकती है।
वट सावित्री क्यों मनायी जाता है?
वट सावित्री व्रत के पीछे सावित्री तथा उनके पति सत्यवान की एक एक कथा जुड़ी हुई है और इस त्योहार को मनाने का कारण भी वही है। आइये अधिक विस्तार में न जाते हुए इस कथा का संक्षिप्त सार जानते हैं।
राजा अश्वपति की पुत्री का नाम सावित्री था। सावित्री बेहद सुंदर तथा चरित्रवान स्त्री थी। सावित्री का विवाह सत्यवान नाम के व्यक्ति से हुआ। सत्यवान बेहद कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति थे तथा ईश्वर पर विश्वास रखते थे। एक दिन एक नारदजी ने सावित्री को बताया कि सत्यवान की आयु बहुत लंबी नहीं है अर्थात उसकी मृत्यु कम उम्र में ही हो जायेगी।
सावित्री को इस बात की खबर लगते ही उसने अपना पूजा-पाठ और बढ़ा दिया और सत्यवान की लंबी उम्र के लिए घोर तपस्या भी की। लेकिन किस्मत में जो लिखा था उसी अनुसार निर्धारित तिथि पर जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जा रहे थे तब सावित्री ने अपने सतीत्व के बल पर यमराज का पीछा करने लगी। यमराज के लाख बोलने पर भी सावित्री वापस नहीं गयी तब अंत में सावित्री की निष्ठा से प्रसन्न होकर तथा सावित्री को आगे जाने से रोकने के लिए यमराज ने सावित्री से वरदान मांगने को कहा।
सावित्री ने तीन वरदान मांगे, जिसमें से आखिरी वरदान उसने पुत्र प्राप्ति का मांग लिया। यमराज ने भी सावित्री को वरदान दे दिया लेकिन बिना पति के पुत्र की प्राप्ति कैसे होगी। अतः यमराज को अपने वचन को निभाने के लिए सावित्री के पति सत्यवान के प्राण वापस करने पड़े।
वट सावित्री व्रत के दिन विवाहित स्त्रियां इसी कथा को सुनकर अपने व्रत को पूरा करती है तथा ये वरदान मांगती है कि उसके पति की असमय मृत्यु न हो, उन्हें लम्बी उम्र प्राप्त हो तथा उनका परिवार बरगद के पेड़ की भांति सदैव हरा भरा रहें।
वट सावित्री का व्रत एक विवाहित स्त्री अपने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए करती है। इस व्रत को जो स्त्री सच्ची श्रद्धा से करती है, उसके पति पर आने वाले हर संकट से उसकी रक्षा होती है। वट सावित्री की कथा अनुसार सावित्री का पति धर्म देखकर यमराज ने उसके पति को पुनः जीवनदान दिया था।
इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है तथा पति-पत्नी का संबंध भी मजबूत होता है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है क्योंकि इसी वृक्ष ने सावित्री के पति को तब तक सुरक्षित रखा था जब तक कि वो यमराज से अपने पति के प्राण वापस लेकर आयी थी।
अतः बरगद के पेड़ की पूजा कर स्त्रियां ये वरदान मांगती है कि जैसे सावित्री के पति की आपने रक्षा की वैसे ही मेरे पति की रक्षा करना, उन्हें प्रत्येक मुसीबत से दूर रखना।
निष्कर्ष #
मुख्य रूप से ये वट सावित्री की पूजा पति के मंगल कामना तथा लंबी उम्र के लिए की जाती है।
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