पितृ पक्ष: जानिए पितृ पक्ष का महत्व और कैसे आप पूर्वजों को सम्मानित कर सकते हैं
पितृ पक्ष के दौरान, पितरों को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। पितृ का अर्थ पूर्वज से है, पितर जो अब हमारे बीच नहीं हैं, उन सबके सम्मान में पितृपक्ष में पूजा की जाती है। अपने पूर्वजों को समर्पित यह विशेष पक्ष अश्विन माह के कृष्ण पक्ष से आरंभ होकर अमावस्या तक रहता है, यही 16 दिनों की अवधि पितृ पक्ष कहलाती है। पितृ पक्ष को श्राद्ध नाम से भी जाना जाता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है, तो उसी दौरान पितृ पक्ष मनाया जाता है। किसी व्यक्ति की कुंडली में, कुंडली का पंचम भाव पूर्व जन्म के कर्मो को दर्शाता है।
सदियों से ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों के आधार पर ही 'गति' प्राप्त होता है। मूल रूप से गति तीन प्रकार की होती है उर्ध्व गति अर्थात स्वर्ग लोक प्राप्त करना, अधोगति अर्थात बुरे कर्मो के कारण मनुष्य अपने मानव योनि से नीचे की योनि को प्राप्त होता है तथा तीसरी गति है स्थिर गति जिसमें व्यक्ति को मानव जीवन ही प्राप्त होता है।
अपने पूर्वजों की पूजा करना, दान करना आपका कर्तव्य है। जिसके माध्यम से आप अपने पूर्वजों को धन्यवाद कह सकते हैं।
जो लोग पितरों को याद नहीं करते हैं, उनके नाम की पूजा नहीं करते, दान नहीं करते उनकी कुंडली में पितृ दोष का निर्माण होता है और उन्हें अपने जीवन में कई कष्टों का सामना करना पड़ता है।
पितृ पक्ष कब से आरंभ हो रहा है
इस वर्ष 29 सितंबर 2023, शुक्रवार से आरंभ होकर अगले 16 दिन बाद इसका समापन 14 अक्टूबर, शनिवार को होगा। पितृ पक्ष के पहले दिन पूर्णिमा की श्राद्ध और प्रतिपाद श्राद्ध भी किया जायेगा। पूर्णिमा के तिथि का आरंभ 28 सितंबर, 2023 को 06:50 संध्या काल से आरंभ होकर 29 सितंबर 2023 को 03:27 बजे संध्याकाल को समाप्त हो जायेगा।
पितृ पक्ष में श्राद्ध तिथियां | |
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पूर्णिमा श्राद्ध | 29 सितंबर 2023 |
प्रतिपदा श्राद्ध | 29 सितंबर 2023 |
द्वितीया श्राद्ध | 30 सितंबर 2023 |
तृतीया श्राद्ध | 1 अक्टूबर 2023 |
चतुर्थी श्राद्ध | 2 अक्टूबर 2023 |
पंचमी श्राद्ध | 3 अक्टूबर 2023 |
षष्टी श्राद्ध | 4 अक्टूबर 2023 |
सप्तमी श्राद्ध | 5 अक्टूबर 2023 |
अष्टमी श्राद्ध | 6 अक्टूबर 2023 |
नवमी श्राद्ध | 7 अक्टूबर 2023 |
दशमी श्राद्ध | 8 अक्टूबर 2023 |
एकादशी श्राद्ध | 9 अक्टूबर 2023 |
द्वादशी श्राद्ध | 11 अक्टूबर 2023 |
त्रयोदशी श्राद्ध | 12 अक्टूबर 2023 |
चतुर्दशी श्राद्ध | 13 अक्टूबर 2023 |
अमावस्या श्राद्ध | 14 अक्टूबर 2023 |
पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का भी विशेष महत्व होता है, आइये जानें:
हमारे शास्त्रों में कर्म तथा पुनर्जन्म का विशेष संबंध देखा जाता है। यही एक कारण है कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका श्राद्ध करना अत्यंत आवश्यक माना गया है। अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से पितृ पक्ष की शुरुआत होती है। अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक की अवधि के दौरान ऐसा माना जाता है कि पूर्वज धरती पर विचरण करते हैं।
पितृ पक्ष में अपने पितरों की याद में उनके नाम की पूजा करवायी जाती है, उनके नाम से पिंडदान किया जाता है। उनके नाम से दान किया जाता है, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। ताकि वो जहाँ भी रहें, खुश रहें।
पिंडदान क्या है
पितृपक्ष के दौरान पितरों की पृथ्वी पर उपस्थिति मानी जाती है। इस दौरान पितरों के नाम का दान जब आप सच्ची श्रद्धा से पूरी विधि के साथ संपन्न करते हैं तो उसी दान को पिंडदान कहा जाता है। पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान तथा श्राद्ध करना आवश्यक होता है। पितरों के मन की शांति के लिए अपनी श्रद्धा से आप जो कुछ भी अर्पित करते हैं, वही श्राद्ध कहलाता है।
पिंडदान भी कई प्रकार के होते हैं। उन्हीं में से एक दान, पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है, जिसे षोडशी पिंडदान कहा जाता है। जब आप सच्चे मन से पिंडदान करते हैं तो उसी पिंडदान के उपरांत मृत व्यक्ति पितरों की श्रेणी में शामिल हो पाते हैं।
पितरों को तृप्ति प्रदान करने के उद्देश्य से विभिन्न देवताओं, ऋषियों तथा पितृ देवों को तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया ही तर्पण कहलाती है। तर्पण करना ही पिंडदान करना कहलाता है केवल पिंडदान में पिंड बनाकर दान किया जाता है।
क्या होता है पितृ दोष
धरती पर पितरों का आगमन तब होता है जब सूर्य देव कन्या राशि में विराजमान होते हैं, किन्तु पितरों की प्रतीक्षा यही तक नहीं रहती है बल्कि जब तक सूर्य तुला राशि में रहते हैं उस पूरे कार्तिक माह में वो अपने वंशजों की प्रतीक्षा करते हैं कि वो उनका श्राद्ध कर्म करेंगे।
किन्तु यदि तब तक भी वंशजों द्वारा श्राद्ध कर्म या पिंड दान न किया जाए और सूर्य देव गोचर करते हुए वृश्चिक राशि में प्रवेश कर जाते हैं तब सभी पितृ जिनका श्राद्ध नहीं हुआ या जिनके नाम का पिंडदान नहीं हुआ वो असंतुष्ट मन से अपने स्थान पर वापस चले जाते हैं फिर अपने उन वंशजों को श्राप देते हैं जिसके कारण ही उनके वंशज धरती पर अनेक प्रकार के कष्ट भोगते हैं।
व्यक्ति की कुंडली में इसी को पितृदोष के रूप में देखा जाता है। कई बार राहु की विशेष स्थितियां भी पितृदोष का निर्माण करती है।
इतना सब कुछ समझ लेने के बाद अब प्रश्न उठता है कि पितृ पक्ष में पिंडदान कौन कर सकता है तथा इसकी विधि क्या है? आइये इसको विस्तार पूर्वक समझते हैं
- पुराण के अनुसार सबसे बड़ा पुत्र अपने पिता तथा अन्य पूर्वजों का श्राद्ध तथा पिंडदान कर सकता है। यदि बड़ा पुत्र न हो तो छोटा पुत्र भी इस विधि को पूरा कर सकता है।
पितृ पक्ष में दान का महत्व
जिस तरह हम किसी भी शुभ कार्य या पुण्य तिथियों में दान-दक्षिणा का कार्य करते हैं उसी प्रकार पितृपक्ष के दौरान पितरों के मन की शांति के लिए कुछ चीजों का दान महत्वपूर्ण माना जाता है। पितृपक्ष के दौरान निम्न 10 वस्तुओं का दान महत्वपूर्ण है:
गाय, भूमि, वस्त्र, काला तिल, सोना, घी, गुड़, धान, चाँदी, नमक, इन वस्तुओं का दान पितरों को तृप्ति प्रदान करता है। पितरों के तर्पण करने से पूर्व सर्वप्रथम दिव्य पितृ तर्पण करना होता है, उसके बाद देव तर्पण करें फिर उसके बाद ऋषि तर्पण किया जाता है फिर दिव्य मनुष्य तर्पण करने के बाद ही स्वयं पितृ तर्पण किये जाने की परंपरा है।
इन विधियों के बाद पितृ चाहे किसी भी प्रकार की योनि में क्यों न हो वह आपके द्वारा किये गए श्राद्ध का अंश स्वीकार कर लेंगे। इससे पितृ को संतुष्टि मिलती है तथा उन्हें विभिन्न प्रकार की निकृष्ट योनियों से मुक्ति मिलती है, तथा उनकी आत्मा मुक्त होकर उच्च योनि में चली जाती है।
पितरों का श्राद्ध न करना उनको दुःख पहुँचाने जैसा ही है, इससे आपको पितरों का श्राप भी मिल सकता है। यही कारण है कि ब्रह्म पुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, वायु पुराण, गरुड़ पुराण, मनु स्मृति तथा महाभारत जैसे महान ग्रंथों में भी श्राद्ध एवं तर्पण से प्राप्त फलों का वर्णन किया गया है।
निष्कर्ष #
पितृ पक्ष हम सभी के लिए एक अवसर है जिस दौरान हम अपने पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा, अपना प्रेम व्यक्त कर सकते है तथा उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
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