क्यों हैं श्रावण माह में रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व ?

रुद्राभिषेक एक पवित्र धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें भगवान शिव को जल और विभिन्न द्रव्यों से स्नान कराया जाता है। ये पूजा शिव के अनुग्रह और शुभ परिणाम की प्राप्ति के लिए की जाती है। रुद्राभिषेक का अर्थ रुद्र यानी भगवान शिव की प्रतिमा का अभिषेक या स्नान करना होता है।
'रुद्र' शब्द शिव के एक रूप को दर्शता है, जो भक्ति, समृद्धि, शांति और आरोग्य की प्रकृति है। 'अभिषेक' या 'स्नान' का अर्थ है देवता को जल, दूध, दही, घी, मधु, बेल पत्र, फूल, चंदन, सिन्दूर, धतूरा, आदि से स्नान कराना। रुद्राभिषेक पूजा में, जल और विविध द्रव्यों से शिव लिंग को स्नान कराया जाता है। भगवान शिव को कराया जाने वाला ये स्नान भगवान शिव के प्रति उनके भक्तों का प्रेम तथा समर्पण को व्यक्त करने का एक माध्यम है।
'रुद्र' शब्द का अर्थ 'क्रोध' या 'रुदन' से भी जोड़ा जाता है, इसलिए रुद्राभिषेक पूजा के द्वारा शिव भक्त अपने मन, वचन और कर्म में क्रोध की प्रवृति को शांत करने का प्रयास करते हैं। पूजा की विधि और मंत्र जाप के द्वारा भक्त अपने अंदर के नकारात्मक गुणों को दूर कर शिव के दिव्य गुणों तथा शक्तियों को अनुभव करने का प्रयास करते हैं।
रुद्राभिषेक का अर्थ है शिव के पवित्र रूप को स्नान कराके उनकी कृपा और अनुग्र ह को प्राप्त करने का प्रयास करना। रुद्राभिषेक पूजा का महत्व भक्ति, आध्यात्मिक उन्नति, शांति, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति से जुड़ा हुआ है। पूजा की विधि, मंत्र, तथा सामग्री अलग-अलग संप्रदाय, स्थान, तथा उनकी परंपरा के अनुरूप थोड़ी भिन्न हो सकती हैं, किन्तु उनकी श्रद्धा एक ही होती है।
आइये जानते है रुद्राभिषेक की विधि, समय तथा उसके महत्व को
पूजा का समय
रुद्राभिषेक पूजा को शिवरात्रि, प्रदोष व्रत, सोमवार विशेष रूप से श्रावण के सोमवार, श्रावण मास, तथा शिवरात्रि जैसे शुभ अवसरों पर करने का विशेष महत्व है। इसके अलावा, आप रुद्राभिषेक को किसी भी शुभ दिन में कर सकते हैं।
पूजा विधि
रुद्राभिषेक पूजा घर या मंदिर में जाती है। पूजा शुरू करने से पहले व्यक्ति का पवित्र होना महत्वपूर्ण है, अतः स्नान करने के बाद ही विधि प्रारंभ करें। पूजा के स्थान को तथा जहाँ शिवजी को स्थापित किया जाएगा, उस स्थान को साफ करें। पूजा में मंत्र उच्चारण, जल तथा पंचामृत से स्नान, धतूरा और बेल पत्रों का चढ़ाव, दीप प्रज्ज्वलन, भजन तथा आरती का पाठ शामिल होता है।
रुद्राभिषेक जैसी महापूजा के लिए उस पूजा की विधि का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक होता है। नीचे पूजा की विधि की विस्तृत जानकारी आपको प्राप्त होगी
1. संकल्प: पूजा के आरंभ में संकल्प लेना होता है। इस संकल्प में व्यक्ति अपनी नियत, भक्ति तथा पूजा के उद्देश्य को संकल्पित करता है।
2. स्नान और पंचामृत अभिषेक: शिव लिंग को जल तथा पंचामृत जिसमें दूध, दही, घी, मधु, शहद शामिल हो उस से स्नान करायें। प्रत्येक स्नान के बाद शिवलिंग की जल से शुद्धिकरण करें।
3. बेल पत्र, फूल तथा चंदन चढ़ाना: जल से शुद्धिकरण के बाद शिव लिंग पर बेलपत्र, फूल तथा चंदन चढ़ायें। बेलपत्र शिव के लिए प्रिय मन जाता है।
4. धतूरा तथा आख चढ़ायें: बेलपत्र चढाने के बाद धतूरा तथा आख के पत्ते भी भगवान शिव को चढ़ायें। ये सब शिव की प्रिय चढ़ावें में से एक है।
5. मंत्र जप: रुद्राभिषेक के दौरान रुद्र सूक्त, महा मृत्युंजय मंत्र, ओम नमः शिवाय मंत्र तथा अन्य शिव मंत्रों का जाप करें।
6. आरती: पूजा के अंत में भगवान शिव की आरती उतारी जाती है, भक्ति भाव से शिव की स्तुति की जाती है।
7. भस्म या राख: भस्म या राख भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। भस्म इस बात को दर्शाता है कि हम शून्य से आते हैं और शून्य में चले जाते हैं। राख अहंकार के पतन का प्रतिनिधित्व करती है।
रुद्राभिषेक में भगवान शिव को विभिन्न चीजें चढ़ाई जाती हैं, जो शिव की पूजा में महत्वपूर्ण है। यहां पर कुछ प्रमुख वस्तुओं का वर्णन किया गया है, जो रुद्राभिषेक में प्रयोग की जाती है
1. जल: शिव लिंग पर जल स्नान कराना रुद्राभिषेक की प्रमुख विधि है। जल पवित्रता तथा जीवन का प्रतिनिधित्व करती है। इस जल से शिव के पवित्र रूप को स्नान करा के शिव भक्त उनसे शक्ति, शांति और अनुग्रह का आशीर्वाद माँगते हैं।
2. दूध: दूध शिव के प्रति स्नेह और प्रेम का प्रतिनिधित्व करता है। दूध से भगवान शिव को स्नान कराने से शिव भक्त को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
3. दही: दही शिव के प्रति श्रद्धा और समर्पण का प्रतिनिधित्व करता है। भगवान शिव को दही से स्नान कराने से व्यक्ति को ज्ञान, बुद्धि तथा विवेक की प्राप्ति होती है।
4. घी: घी शिव के प्रति पूर्णता और समर्पण का प्रतिनिधित्व करता है। भगवान शिव को घी से स्नान करने से व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्य तथा आरोग्य रहने का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
5. मधु: मधु शिव के प्रति मधुर भावना और प्रेम का प्रतिनिधित्व करता है। भगवान शिव को मधु से स्नान करने से व्यक्ति को आनंद, सुख तथा प्रेम की अनुभूति होती है।
6. बेल पत्र: बेल पत्र शिव के लिए अत्यंत प्रिय है। इसे चढ़ाने से शिव प्रसन्न होते हैं। बेल पत्र के चढ़ाने से व्यक्ति को भगवान की कृपा, पुण्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
7. फूल: फूल शिव के प्रति भक्तों के प्रेम तथा भक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। फूल चढ़ाने से शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
8. चंदन: चंदन शिव के प्रति शुद्धता तथा पवित्रता का प्रतिनिधित्व करता है। चन्दन से व्यक्ति को मन की शांति, ध्यान और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
इन सभी चीज़ों के अलावा भी धतूरा, आख, अक्षत, सिन्दूर, फल, बेल पत्र, धूप, दीप आदि, भी रुद्राभिषेक में प्रयोग किये जाते हैं। जिनका अलग-अलग महत्व और अर्थ होता है।
रुद्राभिषेक पूजा में भगवान शिव के प्रति भक्त की आराधना, समर्पण तथा प्रेम की भावना प्रकट होती है। भगवान शिव के दिव्य गुण तथा शक्तियों का अनुभव होता है और भक्तों को शिव की कृपा तथा आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पूजा के लाभ
1. शांति तथा समृद्धि: रुद्राभिषेक पूजा से मन की शांति, पारिवारिक समृद्धि तथा व्यावसायिक उन्नति की प्राप्ति होती है।
2. आरोग्य तथा स्वास्थ्य: रुद्राभिषेक पूजा से रोग से मुक्ति, रोगानुसर रोगी की शक्ति में वृद्धि तथा आरोग्य रहने के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
3. पाप मुक्ति: रुद्राभिषेक पूजा यदि व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से करता है तो वो व्यक्ति अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करता है तथा अपने द्वारा किये गए पुण्य कर्मों का फल पाता है।
4. भक्ति तथा आध्यात्मिक उन्नति: रुद्राभिषेक पूजा से भक्ति तथा आध्यात्मिक उन्नति होती है। मंत्र जाप, भजन और आरती का पाठ करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक रुचि बढ़ती है।
महत्व
रुद्राभिषेक पूजा करने से शिव भक्त को भक्ति, समर्पण, शांति, समृद्धि और आरोग्य रहने के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। रुद्राभिषेक की पूजा के द्वारा भक्त भगवान शिव के दिव्य गुण तथा शक्तियों को महसूस कर सकते हैं तथा उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
रुद्राभिषेक पूजा के लिए किसी ज्ञानी पंडित, धार्मिक गुरु या शिव मंदिर से मार्गदर्शन प्राप्त करना आपके लिए सहायक सिद्ध हो सकता है। रुद्राभिषेक पूजा को पवित्रता, श्रद्धा तथा प्रेम के साथ संपन्न करना चाहिए।
मंत्र जाप
रुद्राभिषेक पूजा के दौरन, कई प्रमुख मंत्रों का पाठ करना शुभ माना जाता है। नीचे कुछ महत्वपूर्ण मंत्रों का उल्लेख किया गया है
रुद्र सूक्त: रुद्र सूक्त, ऋग्वेद का एक अंश है, जिसका पाठ भगवान शिव के प्रति प्रेम तथा उनके नाम की स्तुति के लिए किया जाता है।
महा मृत्युंजय मंत्र: महा मृत्युंजय मंत्र, शिव के विशेष रूप महा मृत्युंजय के जाप के लिए किया जाता है। इस मंत्र के पाठ से व्यक्ति के शारीरिक तथा मानसिक रोग दूर होते हैं।
महामृत्युंजय मंत्र
'ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥'
ॐ नमः शिवाय: 'ॐ नमः शिवाय' का जाप शिव के पवित्र नाम का जाप है। इस मंत्र का जाप भक्ति, शिव के प्रति समर्पण तथा शिव की स्तुति के लिए किया जाता है।
शिव तांडव स्तोत्र: शिव तांडव स्तोत्र, ऋषि रावण द्वारा लिखा गया स्तोत्र है, जिसमें शिव के तांडव नृत्य का वर्णन किया गया है। इस स्तोत्र का पाठ भक्ति, प्रेम तथा शिव के दिव्य रूप की स्तुति के लिए किया जाता है।
इन मंत्रों के अलावा रुद्राभिषेक पूजा में और भी कई शिव मंत्रों का पाठ किया जाता है, जो स्थान, परंपरा और संप्रदाय के अनुरूप अलग हो सकते हैं। अतः किसी विशेष पंडित या धार्मिक गुरु से परामर्श लेना आपके लिए सहायक हो सकता है।
श्रावण माह में रुद्राभिषेक करने के कई महत्व माने जाते हैं। आइये जानते है
1. भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है: श्रावण माह में भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया जाने पर भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है तथा उनका आशीर्वाद सदैव अपने भक्तों पर बना रहता है।
2. पापों का नाश तथा मन की शुद्धि: रुद्राभिषेक द्वारा भगवान शिव के प्रति भक्ति और समर्पण का व्यक्त कर शिव भक्त अपने सभी पापों का नाश कर सकते हैं। जब आपके मन से सभी पाप मिट जायेंगे तो आपकी आत्मा शुद्ध हो जायेगी।
3. मनोकामनाओं की पूर्ति: श्रावण माह में रुद्राभिषेक करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान शिव को समर्पित पूजा तथा भक्ति के माध्यम से आपकी इच्छाओं की पूर्ति होती है। जीवन में सुख, समृद्धि तथा सफलता का आगमन होता है।
4. उत्तम स्वास्थ्य: रुद्राभिषेक करने से शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। इस पूजा के माध्यम से प्रयुक्त पवित्र पदार्थों की शक्ति से शरीर के रोगों का नाश होता है तथा मानसिक तनाव, चिंता और दुःख को दूर किया जाता है।
5. आध्यात्मिक विकास: रुद्राभिषेक करने से आंतरिक शांति तथा आध्यात्मिक विकास होता है। इसके माध्यम से मन की शुद्धि होती है और आंतरिक शक्ति और ज्ञान का विकास होता है।
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