सीता नवमी: श्रद्धा, समर्पण और आस्था का उत्सव
माता सीता को एक आदर्श नारी के रूप में पूरा संसार जानता है, वो समस्त संसार के लिए एक उदहारण के रूप में आज भी मौजूद है। सीता माँ अपने समर्पण, आत्म-बलिदान, साहस और पवित्रता के लिए जानी जाती हैं। सीता माता राजा जनक की पुत्री थी, जो उन्हें खेत में हल चलाते हुए वही मिट्टी से प्राप्त हुई थी, यही कारण है कि उन्हें भूमि पुत्री भी कहा जाता है।
सीता माँ का जन्म वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन का माना गया है, इसलिए इस दिन को सीता नवमी के रूप में जाना जाता है। सीता माँ को माता लक्ष्मी का स्वरुप भी कहा गया है, अर्थात माता सीता की पूजा करने से माँ लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं।
माता सीता ने अपना पूरा जीवन अपने पति श्री राम को समर्पित कर दिया और जब तक जीवित रही तब तक सांसारिक कर्तव्यों को पूरा करती रही, तथा बाद में उसी धरती माँ की गोद में समा गयी जहाँ से वो आयी थी। सीतामढ़ी को माता सीता का जन्म स्थल माना गया है। मिथिलांचल में सीता नवमी को एक पर्व के रूप में बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
रामनवमी के ठीक एक महीने के बाद सीता नवमी आती है। सीता नवमी विवाहित महिलाओं के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय है।
शुभ मुहूर्त तथा समय
इस वर्ष सीता नवमी 16 मई 2024, गुरुवार को मनाई जाएगी। इस वर्ष नवमी तिथि 16 मई को सुबह 06:22 बजे से शुरू होकर 17 मई 2024 को सुबह 8:48 बजे समाप्त होगी।
मध्याह्न मुहूर्त सुबह 11 बजकर 4 मिनट से आरंभ होकर दोपहर के 1 बजकर 43 मिनट तक रहेगा।
सीता नवमी मनाये जाने का कारण
सीता नवमी माता सीता के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सीता नवमी के दिन पूजा-पाठ करना तथा व्रत करना बहुत ही शुभ माना जाता है। चूँकि माता सीता, माँ लक्ष्मी का स्वरुप भी है इसलिए इस पूजा का महत्व और बढ़ जाता है।
इस दिन माता सीता की पूजा करने से घर में सुख-शांति का वास होता है, संतान-सुख की प्राप्ति होती है। यदि विवाहित औरतें सीता नवमी के दिन का व्रत रखती हैं तो उनके पति की आयु लम्बी होती है तथा वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।
पूजा विधि तथा महत्वपूर्ण अनुष्ठान
प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें। स्नान करते समय “गंगा च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती नर्मदा सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधाम कुरु” मंत्र का जाप करें। उसके बाद स्वयं पर गंगाजल छिड़कर, पूजा स्थान की साफ-सफाई करें। सफाई होने के बाद पूजा स्थान पर दीप प्रज्वलित करें। इसके बाद सभी देवी-देवता को पुष्प, प्रसाद, चंदन, तिल, अक्षत तथा जल अर्पित करें।
इनके साथ ही भगवान विष्णु तथा माँ लक्ष्मी की भी पूजा करें क्योंकि श्री राम तथा माता सीता उनके ही स्वरुप हैं। इसके बाद माता सीता के नाम की आरती करें। प्रसाद का भोग लगाते समय ध्यान रखें कि आप जिस चीज का भोग लगा रहें है, वो केवल सात्विक ही होनी चाहिए। इस दिन “सिया राम -सिया राम” मंत्र का जाप करना भी शुभ फल प्रदान करता है।
अपनी पूजा को और अधिक शुभ बनाने के लिए आप ब्राह्मणों को रामायण का पाठ करने के लिए भी बुला सकते हैं। यदि इस पूजा को आप बड़े पैमाने पर करना चाहते हैं तो यज्ञ भी करवा सकते हैं।
सीता नवमी का व्रत की विधि
मुख्य रूप से सीता नवमी का व्रत विवाहित स्त्री अपने पति की लम्बी उम्र के लिए रखती है। लेकिन माता सीता सभी के लिए देवी माँ का स्वरूप है तो अपनी स्वेच्छा से तथा पूरी श्रद्धा से जिसकी इच्छा हो वो व्रत को नियमानुसार कर सकता है।
आमतौर पर लोग पूरे दिन का व्रत रखते हैं और केवल पानी पीकर उपवास को कायम रखते हैं किन्तु ये थोड़ा कठिन हो सकता है।इसलिए यदि ऐसा कर पाना आपके लिए संभव न हो तो आप दूध, फल तथा मेवे खा कर भी अपना व्रत कर सकते हैं।
पूरे दिन तथा रात का व्रत रखने के बाद अगले दिन माता सीता की पूजा करने के बाद उनको लगाए गए भोग तथा पानी से आप अपना व्रत खोल सकते हैं। प्रयास करें कि आप सीता नवमी की व्रत कथा सुनकर ही व्रत खोलें।
कौन-से रत्न धारण कर करें पूजा
12 मुखी रुद्राक्ष भगवान राम का प्रतिनिधित्व करता है, तो यदि संभव हो तो सीता नवमी के दिन 12 मुखी रुद्राक्ष धारण कर व्रत तथा पूजा करें।
सीता नवमी आरंभ होने से पूर्व यदि आप 12 मुखी रुद्राक्ष धारण कर लेते हैं तो आपकी आत्मा शुद्ध होगी तथा इसके साथ ही आपको इस दिन के कठिन उपवास को रखने की शक्ति प्राप्त होगी। रुद्राक्ष धारण करने के बाद किसी भी प्रकार की नशीली पदार्थ का सेवन न करें।
सीता नवमी पर मंत्र जप का महत्व
सीता नवमी पर मंत्रों का जाप करने से पहले माता सीता तथा भगवान राम का आँख बंद कर ध्यान करें। उनका ध्यान करते हुए आप मंत्रों का जाप कर सकते हैं। ध्यान रहें यदि इन मंत्रों का आप प्रातःकाल के समय जाप करते हैं तो इसके विशेष लाभ आपको प्राप्त होंगे।
उनके रूपों का ध्यान करते हुए आप निम्न मंत्र का जाप कर सकते हैं:
'श्री सीताय नम'- यह एक सरल मंत्र है तथा माता सीता के आह्वान के लिए प्रभावी है। इसका 108 बार जप करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
'सुंदर कांड'- सीता नवमी के पावन दिन पर आप सुंदर कांड का पूरा पाठ कर सकते हैं।
'राम रक्षा स्तोत्र'- राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करना विशेष रूप से शुभ है, क्योंकि यह आपको असाधारण शक्ति, बल तथा बुद्धि प्रदान करता है। यह स्तोत्र बीमारी को नष्ट करता है और आपको सभी बुराइयों से दूर रख सुरक्षा प्रदान करता है।
'सीता-राम'- इनके नाम को मंत्र के रूप में जाप करने से युगल सरकार का आशीर्वाद प्राप्त होगा। श्री राम और सीता के नाम का एक साथ जप करने से आपकी तंत्रिका तंत्र सक्रिय हो जाएगी तथा आप ऊर्जावान महसूस करेंगे।
उपरोक्त मंत्रों के अलावा आप “राम राम जय राजा राम, राम राम जय सीता राम” इस महामंत्र का भी जाप कर सकते हैं।
सीता नवमी मनाये जाने के लाभ
विवाहित स्त्रियां यदि सीता नवमी के दिन व्रत रखती हैं तथा पूजा करती हैं तो, उनके पति की आयु लंबी होती है तथा उन्हें जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
नवविवाहित स्त्रियां यदि सीता नवमी का व्रत रखती हैं तो उनका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है तथा उनके सुख में वृद्धि होती रहती है।
सीता नवमी के दिन व्रत रखने से व्यक्ति निर्भय होता है, उनके चरित्र को शक्ति प्राप्त होती है तथा उनका आध्यात्मिक विकास होता है। व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को अच्छे तथा बुरे के बीच का फर्क समझ पाने की क्षमता प्राप्त होती है तथा जीवन में शांति-समृद्धि आती है।
इस उपवास को रखने से शरीर से विषाक्त पदार्थ तथा मन से अशुद्धियाँ दूर हो जाती है।
निष्कर्ष #
इस प्रकार, माता सीता ने संयम, मर्यादा, आदर्श, पतिव्रता, साहस, बलिदान इन सभी चीजों का वास्तविक अर्थ बताया है। सीता नवमी पर पूरी आस्था और सच्ची श्रद्धा से उनकी पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में सुख-समृद्धि, शांति की प्राप्ति तो होती ही है तथा मृत्यु के बाद मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
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